कहा करो 'जय राम' न मिलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९।
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला,
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: कितना चौड़ा पाट नदी का, कितनी भारी शाम
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९।
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
shayad koshish karne walo ki har nahi hoti ye hariwansh ray bachchan click here ki hai, aur aur hm panchi suryakant ji ki.. pls if i m wrong correct me.. i m not blameing i m cnfused..:)
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,